Author 1 :- प्रीती ( Research Scholar )
Author 2 :- पूनम गुप्ता2 ( Assistant Professor )
आरंशभक चरणों में ईस्ट इंडडया कंपनी की शशक्षा के प्रशत कोई विशेष रुशच नह ं थी, क्योंडक उस समय इंग्लैंड में शशक्षा की कोई राज्य प्रायोजित व्यिस्था अजस्तत्ि में नह ं थी और राज्य द्वारा डकसी भी प्रकार के हस्तक्षेप का प्रबल विरोध डकया िाता था। भारत में उस समय संस्कृत और अरबी िैसे परंपरागत ज्ञान की प्रशतवित शशक्षा प्रणाली विद्यमान थी। उदाहरणस्िरूप, 1822 में मद्रास प्रेसीडेंसी में 12,498 स्िदेशी विद्यालय संचाशलत थे, िबडक 1835 तक बंगाल में लगभग एक लाख स्िदेशी विद्यालयों का उल्लेख शमलता है। स्िदेशी शशक्षा प्रणाली के दायरे से बाहर शशक्षा प्रदान करने के प्रारंशभक प्रयास मुख्यतः शमशनररयों और शनिी संगठनों द्वारा डकए गए थे। 1659 में कोटट ऑफ डायरेक्टसट ने एक डडस्पैच के माध्यम से सभी साधनों से सुसमाचार के प्रचार की अपनी प्रबल इच्छा प्रकट की थी। इसी िषट, ईस्ट इंडडया कंपनी ने अपने िहािों पर शमशनररयों को भारत लाने की अनुमशत प्रदान की। 1698 में विडटश संसद ने कंपनी के चाटटर में 'शमशनर क्लॉि' िोडा, जिसके तहत कंपनी के प्रशतिानों में धाशमटक गशतविशधयों के शलए विशेष मंवियों की शनयुवि का प्रािधान डकया गया। इस शोध-पि में 'राष्ट्रीय शनमाटण में प्राथशमक शशक्षा की भूशमका' का विश्लेषण विशेष रूप से राष्ट्रीय शशक्षा नीशत 2020 के संदभट में डकया िाएगा।" यह सामग्री िडटल और प्रभािशाली डहंद में आपके शोध-पि के शलए उपयुि हो सकती है। यडद कोई संशोधन या विस्तार चाडहए, तो अिश्य बताएं।